छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: माफिया-अफसरों की मिलीभगत, किसानों की जेब कटी, पत्रकार पर केस ठोका जा रहा

अंकुर तिवारी/। छत्तीसगढ़ में यूरिया और पोटास की कालाबाजारी का गंदा खेल अब किसानों की कमर तोड़ रहा है। कांकेर जिले के पखांजूर में जब एक युवा पत्रकार ने इस गोरखधंधे का पर्दाफाश किया, तो माफिया और अफसरों की मिलीभगत ने मिलकर उसे ही वसूलीबाज बताकर फंसाने की साजिश रच डाली।

पत्रकार धनंजय चंद को पहले फोन पर जान से मारने की धमकी दी गई। जब उन्होंने पखांजूर थाने में शिकायत दर्ज कराई, तो पुलिस और कृषि विभाग के अफसरों ने माफिया का साथ देते हुए अब उन्हीं पर झूठा मुकदमा थोपने की तैयारी कर ली।

पिछले दिनों कृषि विभाग ने एक ट्रक यूरिया जब्त किया था। लेकिन किसानों को राहत देने और सच उजागर करने की बजाय न तो खाद का सैंपल लिया गया और न जांच हुई। ट्रक को थाने से छुड़ाकर चुपचाप छोड़ दिया गया।

और फिर कागजों में मिलावटी खाद को ‘ओके’ कर दिया गया। जब इस घोटाले पर लगातार पत्रकारिता हुई तो अफसर-माफिया की पोल खुलने लगी। अब वही माफिया पत्रकार को रास्ते से हटाने के लिए धमकी और फर्जी केस का सहारा ले रहा है।

सिस्टम को किसका इतंजार

यह वही बस्तर है, जहां सड़क ठेकेदार ने पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या कर शव को सेप्टिक टैंक में छिपा दिया था। उस घटना ने देश को हिला दिया था, लेकिन सरकार और सिस्टम ने सबक नहीं सीखा। अब फिर एक पत्रकार मौत और साजिश के साये में है।

किसानों का दर्द, खेत उजड़ गए

पखांजूर के किसान कह रहे हैं कि मिलावटी यूरिया और नकली पोटास डालने से उनकी फसलें बर्बाद हो रही हैं। जो फसल लहलहानी चाहिए थी, वह सूखकर खड़ी रह गई। किसानों को लाखों का नुकसान हो चुका है। किसान सवाल पूछ रहे हैं कि जब असली खाद के लिए सरकार सब्सिडी देती है तो फिर नकली माल कैसे बिक रहा है? जवाब किसी के पास नहीं।

किसानों का आरोप है कि अगर कृषि विभाग और पुलिस सचमुच ईमानदार होती तो अब तक माफिया सलाखों के पीछे होता। लेकिन यहां तो उल्टा किसान बर्बाद हो रहें हैं, और उनकी आवाज़ उठाने वाला पत्रकार ही आरोपी बनाया जा रहा है।

एडीओ अंगद की पांव की तरह जमा, ऊपर तक सांठगांठ

पखांजूर का कृषि विभाग का एडीओ (कृषि विकास अधिकारी) अंगद की पांव की तरह जमा बैठा है। सरकार बदल जाए या अफसर, इस सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता। नेताओं और अफसरों के संरक्षण ने इस माफियातंत्र को इतना मजबूत बना दिया है कि किसानों की परवाह करने की बजाय अब सच बोलने वाले पत्रकार पर ही शिकंजा कसा जा रहा है।

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