पहलगाम में हमला करने वाले रजिस्टेंस फ्रंट ने कहां-कहां अटैक किया, कौन है मास्टरमाइंड? जानें आतंकी बनने के लिए कैसे उकसाते हैं

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को आतंकवादी हमले में 26 लोगों की जान चली गई. इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली है. आइए जान लेते हैं कि कैसे बना रेजिस्टेंस फ्रंट और कौन है इसका मास्टर माइंड? यह आतंकवादी संगठन कश्मीर में कैसे फैला और कहां-कहां हमले किए?
यह 5 अगस्त 2019 की बात है. संसद ने भारतीय संविधान में संशोधन करके जम्मू-कश्मीर से धारा-370 के कुछ प्रावधानों और 35ए को हटा दिया था. इसके बाद ही रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) का गठन किया गया था. शुरुआत में टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में कार्यरत था. छह महीने के अंदर ही लश्कर-ए-तैयबा के साथ ही कई और गुटों के आतंकवादियों को एकीकृत किया गया और रेजिस्टेंस फ्रंट एक फिजिकल आतंकवादी ग्रुप के रूप में सामने आया. साल 2019 में अपनी स्थापना के बाद से ही इस आतंकवादी समूह ने कई हमले किए हैं.
पाकिस्तान की शह से बनाया गया
ऐसा माना जाता है कि टीआरएफ के गठन में पाकिस्तान की सबसे बड़ी जासूसी एजेंसी आईएसआई का सबसे बड़ा हाथ है. इस नए आतंकवादी संगठन को बनाने का उद्देश्य यह था कि लश्कर-ए-तैयबा से अंतरराष्ट्रीय ध्यान हटाया जा सके. खासकर साल 2018 में ही पाकिस्तान को वित्तीय कार्रवाई कार्य बल की ग्रे सूची में शामिल कर दिया गया था. इसके बाद उसके सामने वित्तीय संकट खड़ा हुआ था. इसलिए रणनीतिक पैंतरेबाजी करते हुए पाकिस्तान ने टीआरएफ का गठन किया. उस वक्त पाकिस्तान आतंकवादियों की फंडिंग को लेकर वित्तीय कार्रवाई कार्यबल के सवालों के दबाव में था.
भारत की ओर से आधिकारिक तौर पर साल 2023 में टीआरएफ को आतंकी संगठन घोषित जा चुका है.
शेख सज्जाद गुल है मुखिया
टीआरएफ का संस्थापक प्रमुख शेख सज्जाद गुल उर्फ शेख सज्जाद को माना जाता है. 14 जून 2018 को श्रीनगर में जाने-माने पत्रकार शुजात बुखारी और उनके दो निजी सिक्योरिटी गार्डों की हत्या में भी शेख सज्जाद का नाम आया था. आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के कारण भारतीय गृह मंत्रालय ने साल 2022 में सज्जाद गुल को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आतंकी घोषित कर दिया था.
टीआरएफ से जुड़े आतंकवादियों में साजिद जट्ट और सलीम रहमानी जैसे नाम भी शामिल हैं. ये सभी सीधे-सीधे लश्कर ए तैयबा से जुड़े रहे हैं. भारत की ओर से आधिकारिक तौर पर साल 2023 में टीआरएफ को आतंकी संगठन घोषित जा चुका है.
यह है पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड
पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड सैफुल्लाह कासूरी उर्फ सैफुल्लाह साजिद जट्ट को बताया जा रहा है. उसे अली, हबीबुल्लाह और नौमान जैसे कई और नामों से भी जाना जाता है. सैफुल्लाह लश्कर-ए-तैयबा का डिप्टी चीफ भी है. खुफिया एजेंसियों की मानें तो सैफुल्लाह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का निवासी है.
सैफुल्लाह लश्कर ए तैयबा के संस्थापक आतंकवादी हाफिज सईद का भरोसेमंद साथी है. सैफुल्लाह की उम्र 40-45 साल बताई जाती है और वह दो दशकों से जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त है.
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लोगों को भड़काने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल
टीआरएफ जम्मू-कश्मीर का माहौल बिगाड़ने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का जमकर इस्तेमाल करता रहा है. इसलिए इसे फेसलेस और तकनीक प्रेमी आतंकी संगठन माना जाता है. अपने संदेशों को सोशल मीडिया के जरिए फैलाकर यह जम्मू-कश्मीर के लोगों को सत्ता के खिलाफ भड़काता है और आतंकवादी संगठनों में लोगों को शामिल होने के लिए उकसाता है.
आसान नहीं है पता लगाना
यही नहीं, टीआरएफ की रणनीति भी पहले के आतंकी संगठनों से अलग है. इस संगठन में फिदायीन हमलावर तैयार नहीं किए जाते. इसके सदस्यों की तस्वीरें भी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. ये सभी आतंकी जमीनी कार्यकर्ताओं का व्यापक नेटवर्क तैयार करते हैं और उनके जरिए आसान टारगेट बनाते हैं. इस संगठन के सदस्यों में ऐसे युवाओं को शामिल किया गया है, जो सुरक्षा बलों के रडार पर हैं ही नहीं. इसके कारण उनका पता लगा पाना आसान नहीं होता.
आतंकवादियों के खिलाफ लगातार काम कर रहे अफसरों का कहना है कि टीआरएफ कश्मीर में सीआरपीएफ के जवानों और सेना पर होने वाले हमलों को शूट करने के लिए गोप्रो जैसे बॉडी कैमरों का प्रयोग करता है. इसने कश्मीरी पंडितों ही नहीं, सिखों, हिंदुओं और मुसलमानों के साथ ही अलग-अलग धार्मिक आधार पर लोगों को निशाना बनाया है.
पहलगाम आतंकी हमला.
TRF ने कहां-कहां किए हमले?
एक अप्रैल 2020 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा के केरन सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास चार दिन तक गोलीबारी के बाद टीआरएफ का नाम पहली बार प्रमुखता से सामने आया था. पुलिस रिकॉर्ड की मानें तो तब पीओके के पांच घुसपैठियों ने केरन के दुर्गम इलाके में जमी बर्फ में कब्जा किया और गोलीबारी तक पांच दिनों से भी अधिक समय तक वहां कब्जा जमाए रखा था. सेना की कई दिनों तक गोलीबारी के बाद बेहद प्रशिक्षित ये आतंकवादी मारे गए गए. इस ऑपरेशन के दौरान एक जूनियर कमीशंड अधिकारी सहित पांच सैनिक भी शहीद हुए थे.
30 अक्तूबर 2020 को कश्मीर के कुलगाम जिले में आतंकियों ने भाजपा के तीन कार्यकर्ताओं को गोली मार दी, जिनसे उनकी मौत हो गई थी. इस वारदात के कुछ ही मिनट बाद द रेजिस्टेंस फ्रंट ने हमले की जिम्मेदारी ले ली थी.
26 नंवबर 2020 को द रेजिस्टेंस फ्रंट के आतंकियों ने श्रीनगर के लवेपोरा इलाके में सेना की 2-राष्ट्रीय राइफल्स पर हमला किया और इसका वीडियो भी बनाया. इस वीडियो में श्रीनगर-बारामुला राजमार्ग पर आतंकवादियों द्वारा दो सैनिकों को नजदीक से गोली मारे जाते और उनके हथियार छीनते हुए दिखाया गया था.
26 फरवरी 2023 को कश्मीरी पंडित संजय शर्मा और उनकी पत्नी पर पुलवामा में बाजार जाते समय आतंकवादियों ने गोलियां चलाई थीं. एक सुरक्षा गार्ड के रूप में कार्यरत शर्मा को अस्पताल ले जाया गया. वहां उनकी मौत हो गई थी.
20 अक्तूबर 2024 को टीआरएफ के आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के गंदेरबल जिले में सोनमर्ग में एक निर्माण स्थल पर गोलीबारी की. इसमें एक डॉक्टर और छह प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई थी.